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पहाड़ों की पगडंडियों पर चढ़ते हुए मैनें अपना पहना हुआ आलस उतारा और पहन ली कईयों की उतारी हुई थकान कंकड़ों की चुभन पहनी तो उतार ली अपने तन की कोमलता अपने मन की कठोरता उतारने के बाद नदी की तरलता पहन ली मेरे भीतर बहुत कुछ उबल रहा था जो मैंने धीरे-धीरे उतार लिया स्निग्धता से भरे हुए साफ़ सुथरी बर्फ के ग्लेशियर पर और पहन ली उसकी शीतलता दुपहरी की धूप पहनकर मैं गला आया अपने भीतर के पत्थर READ MORE
लड़कियों की ‘हिंट’ समझने से पहले ‘पिंक’ देखें
कभी-कभी केवल अंडरटोन से काम नहीं चलता. कुछ बातें होती हैं जो दो-टूक , साफ़-साफ़ कहनी पड़ती हैं. जब समाज का एक बड़ा हिस्सा ग़लत ‘हिंट’ लेने लगता है तो उसे केवल ‘हिंट’ देने से काम नहीं चलता. इसलिए पिंक में एकदम बोल्ड और साफ़-साफ़ शब्दों में ‘नो मतलब नो’ का सन्देश दिया जाना सही समय पर एक ज़रूरी हस्तक्षेप की तरह लगता है. पिंक. ये रंग लड़कियों के हिस्से में क्यों आया होगा ? जब पहली बार खुद से हम ये सवाल कर READ MORE
उस बच्चे के होंठ में पालथी मार के बैठी थी पागल
खिड़की पर परदे और दरवाजों पे रहती है सांकल फिर जाने किस रस्ते से दबे पांव वो गई निकल सड़कों, चौराहों, बाज़ारो, घर से, दफ्तर से गायब दिल से, बातों से, चेहरे से, होंठो से भी गई फिसल इसका, उसका, सबका, चेहरा मुरझाया सा लगा मुझे कुछ तो था जो सबके अन्दर धीरे-धीरे गया बदल जब फुर्सत के दिन थे तो चौखट पे ही दिख जाती थी ‘खुशी’ नाम की वो चिड़िया ना जाने कहां हुई ओझल दिन भर भाग दौड़ कर जाने कहां-कहां खोजी READ MORE
बैठ के बालकनी में मौसम गाये एक ग़ज़ल
जीने का ढब कुछ दिन को इतना आवारा हो अजनबी पहाड़ी रस्ता हो, पानी का धारा हो वक्त नदी की लहरों में कुछ देर ठहर जाए डूब रही उम्मीदों को तिनके का सहारा हो जल्दीबाजी, शोर-शराबा सबकी छुट्टी कर खुला हुआ आकाश हो और एक टूटता तारा हो रुपया-पैसा, बटुवा, सबकुछ एक किनारे रख मनमर्जी के सिक्कों से जीवन का गुज़ारा हों तितली आँख मिचोली खेले हवा के आंगन में दूर कहीं मीठी लय में बजता इकतारा हो बैठ के बालकनी READ MORE
बड़ा शायर था वो कुछ शेर लिखकर मर गया होगा
वो कुछ अलफ़ाज़ अपने नाम सबके कर गया होगा बड़ा शायर था वो कुछ शेर लिखकर मर गया होगा सभी मसरूफ रहते हैं कि इतना वक्त किसको है मुझे शक है कोई उसके जनाजे पर गया होगा किसी की शान में शायद कसीदे पढ़ नहीं पाया किसी के गाल पर शायद तमाचा कर गया होगा गरीबों के हुकूकों पर लिखा करता था वो अक्सर कोई उसकी गरीबी देखकर ही डर गया होगा न जाने क्यों कलम से उसकी, कुर्सी खौफ खाती थी उसे वो जूतियों की नोक पर रखकर READ MORE
देश की राजधानी में नींद भी है एक सपना
नोट: लेख मूलतः नवभारत टाइम्स के लिए लिखा गया है और 14 नवम्बर 2015 के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित हो चुका है. दिल्ली में जिन सड़कों, फ़्लाइओवरों, से आप गुजरते हैं उनके आस-पास रात के वक्त ऐसे लोगों की दुनिया बस जाती जिनकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सपना है – नींद. उस शहर में जहां रियल एस्टेट का बाज़ार अपने बूम पर हो, तीन कमरों और एक छत के लिए जहां लोग करोड़ रूपये तक खर्च कर देने की हैसियत रखते हों वहां एक READ MORE
अब उन पहाड़ी मैगी पॉइंट्स का क्या होगा ?
डियर मैगी, कल जब किराने की दूकान में गया तो जाते ही कहा…आंटी मैगी..ये कहते ही मुझको रुकना पड़ा..न चाहते हुए भी.. तुम वहीं शेल्फ में रखे थे..पर आज पहले की तरह सबसे आगे की लाइन में खड़े मुस्कुरा नहीं रहे थे…तुम्हें कहीं पीछे कई और नूडल्स से ढंकते हुए किसी अपराधी की तरह छुपाया गया था.. न चाहते हुए भी आज नज़र दूसरे नामों के नूडल्स को तलाश रही थी..समझ नहीं आ रहा था कि तुम्हारी जगह किसे चुनूं? तुम READ MORE
पीके एकदम ‘लुल’ नहीं है
चलिये शुरु से शुरु करते हैं। पीके इसी भाव से शुरु होती है। एकदम नग्न। आवरणहीन। इस विशाल दुनिया के मरुस्थल में एक नंगा आदमी खड़ा है जिसे दुनिया के बारे में कुछ नहीं पता। ठीक उस मानसिक अवस्था में जैसे हम पैदा होने के ठीक बाद होते हैं। ठीक इसी बिन्दु पर फिल्म से बड़ी उम्मीदें बंध जाती हैं। एक एलियन की नज़र से इस दुनिया को देखना जिसके लिये ये दुनिया एक अनजान गोला भर है। वो नज़र जिसमें कोई READ MORE
उत्तराखंड बाइक यात्रा -4
चौथा दिन : बेरीनाग-चौकौड़ी-राईआगर-गंगोलीहाट सुबह-सुबह हम बेरीनाग से चौकोड़ी के रवाना हो गए. मौसम एकदम खुला हुआ था. आकाश एकदम साफ़ और हवा मंद मंद बह रही थी. बाइक-यात्रा के लिए ये एकदम मुफीद मौसम था. चौकोड़ी पहुंचकर हम काफी देर तक खुद के वजूद को जंगल के हवाले किये बैठे रहे. एकदम शांत माहौल और सामने हिमालय की श्रृंखलाओं का मनोरम दृश्य. बिना कुछ बोले केवल प्रकृति को निहारते हुए ही यहां कई READ MORE
उत्तराखंड बाइक यात्रा – 3
तीसरा दिन: अल्मोड़ा-धौलछीना-सेराघाट-राईआगर-बेरीनाग सुबह के करीब साड़े नौ बजे हम अल्मोड़ा से रवाना हुए। अब तक बिना नागा भागती बाइक को अब कुछ ईंधन की ज़रुरत आन पड़ी थी। हमने अल्मोड़ा में ही उसकी इस ज़रुरत को पूरा कर लिया। टैंक दूसरी बार फुल कराया जा चुका था। आज का हमारा अगला तय पड़ाव गंगोलीहाट था। हम किसी जल्दबाजी में नहीं थे। अव्वल तो अल्मोड़ा से गंगालीहाट की दूरी तकरीबन 109 किलोमीटर READ MORE
उत्तराखंड बाइक यात्रा -1
पहला दिन: दिल्ली-रामपुर-नौकुचियाताल 21 नवम्बर से 27 नवम्बर हम लगातार हिमालय का पीछा करने वाले थे। 20 तारीख की सुबह ठीक साड़े छह बजे जब हम दिल्ली से रवाना हो रहे थे तो ये बात हमारे ज़हन में कहीं नहीं थी। सुबह अभी एक धुंधलके से जाग रही थी। पैट्रोल टैंक फुल किया चुका था। धीरे धीरे अपने चेहरे से अंधेरे की चादर हटाता सूरज हमें अपने बैगपैक के साथ एवेन्जर बाइक पर दिल्ली की सड़कों से गुजरता हुआ READ MORE
कहानी : घुटने का दर्द
1. अगस्त क्रान्ति राजधानी मुंबई सेन्ट्रल के प्लेटफाॅर्म एक से चल पड़ी थी। मम्मी खिड़की के बाहर भागती हुई दुनिया को देख रही थी और पापा अभी अभी आये मिड डे अखबार को पलट रहे थे। हमारी तीन सीटों में से एक सीट 8 नम्बर की थी जो उस कोच के दूसरे छोर पर थी। मैं उस सीट को देखने के लिये जाकर वापस लौटा तो देखा कि एक 45-46 साल का लगने वाला, उचले चेहरे पर नज़र के चश्मे पहना वो अजनबी आदमी पापा को कुछ बताये जा READ MORE
नीद से जागा हुआ शब्द
एक दिन अचानक नीद से जागा एक सोया हुआ शब्द लेने लगा तेज़ तेज़ सासें और बिखरने लगे हवा में कई डरे हुए अक्षर उसने अभी अभी देखा था एक सपना जिसमें एक जंग खाती अल्मारी में बंद थी कई कहानियां जो वापस जाना चाहती थी अपनी अपनी किताबों में नौकरी नाम का वो हत्यारा जिसका वज़न पंद्रह घंटे से भी ज्यादा था वक्त की छुरी से कर रहा था एक एक कहानी की हत्या कहानियां रोती, चीखती ,चिल्लाती तोड़ रही थी एक एक READ MORE
The great ‘Kumaoni wedding’
इस बार अपने गांव चिटगल गया , काफी वक्त हो गया था वहां गए हुए. चिटगल, उत्तराखंड में गंगोलीहाट नाम की एक खूबसूरत सीमान्त तहसील का एक बेहद खूबसूरत गाँव है. पर उस ख़ूबसूरती को संवारने के लिए, उसे महसूस करने के लिए और उसे बचाए रखने के लिए वहां लोग लगातार कम होते जा रहे हैं. असुविधाओं और अभावों के चलते परिवार के परिवार अपने पुश्तैनी घरों में ताला जड़कर वहां से बाहर आ रहे हैं. रोजगार, शिक्षा, READ MORE
संध्या: हीरा सिंह राणा
हीरा सिंह राणा उत्तराखंड के मशहूर जनकवि एवं गीतकार हैं. उनके द्वारा लिखे गए गीत उत्तराखंड के तमाम आन्दोलनों में गाये जाते रहे हैं… उनका लिखा गीत ‘लस्का कमर बांधा’ उत्तराखंड आन्दोलन के दौरान आन्दोलनकारियों के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ. यह वीडिओ २३ मार्च २०१४ को गैरसैण में हुए ‘उमेश डोभाल स्मृति व्याख्यान एवं पुरस्कार समारोह’ के दौरान बनाया गया है.. ‘संध्या’ यानी शाम की READ MORE
तुम आई हो
Photo: Umesh Pant जब जब खुशी गीले कपड़ों की तरह लटकी हुई होती है उदासी की तार में टपक रही होती हैं अकेलेपन की बूदें टप टप टप सूरज थका हारा सा बैठा रहता है कहीं दूर कई कई दिन मन कर रहा होता है एक अदद धूप का इंतज़ार ऐसे में तुम्हारा आना उस धूप का आना है जो दिन-रात आ-जा सकती है बेरोक टोक तुम वो मौसम हो जिसके आते ही भाप हो जाती हैं अकेलेपन की बूदें आज फिर कई दिनों बाद गम के मैले कपड़े उतारकर साफ़ सुथरी खुशी READ MORE
उनके काले सच
जनता को भरमाने वाले उनके काले सच कड़वे राज़ छुपाने वाले उनके काले सच झूठ की चादर तान के चैन से सोने वाले लोग सबकी नीद उड़ाने वाले उनके काले सच गलती करके वो कहते हैं बहक गए थे हम खुद को न्याय दिलाने वाले उनके काले सच अपनी धमक के आगे जो सबको बौना समझें दुनिया को धमकाने वाले उनके काले सच सत्ता को अलबत्ता मानें जो अपनी जागीर तर्कों को झुठलाने वाले उनके काले सच आदर्शों का झोला लेकर घूमा करते READ MORE
पत्थर नहीं लगवाया तो प्रसाद नहीं दिया
(यह लेख गाँव कनेक्शन के ४४ वें अंक में प्रकाशित हो चुका है.) अयोध्या के बारे में अब तक अर्जित मेरी सारी जानकारियों के स्रोत किताबी रहे हैं। स्कूल के पाठ्यक्रम में मौजूद रामायण और रामचरित मानस की किताबों से शुरु हुआ ये सफर अखबारों और समाचार चैनलों से मिली जानकारियों से ज़रिये जारी रहा। रामलीलाओं में भी अक्सर अयोध्या का जि़क्र होता रहा। अलग-अलग शहरों की अलग-अलग रामलीलाओं में न जाने READ MORE
कहीं आप भी नीरो के मेहमान तो नहीं हैं
नोट: मेरा यह लेख साप्ताहिक समाचार पत्र गाँव कनेक्शन में प्रकाशित हो चुका है। रोम में एक शासक हुआ करता था- नीरो। एक ऐसा शासक जिसके शासनकाल में लगी आग की लपटें आज तक इतिहास के पन्नों को झुलसाती हैं। जब भी उन लपटों की बात होती है तो घोर जनता विरोधी शाषन की तस्वीरें उभरकर सामने आ जाती हैं, कुछ कुछ वही होता है जब भारत में पिछले सालों में हुई किसानों की आत्महत्याओं की बात होती है। किसानों की READ MORE
जल्द ही गाँव पर फिल्म बनाउंगा : दीपक डोबरियाल
मूलतः गाँव कनेक्शन के लिए लिए गए इस साक्षात्कार को यहां भी पढ़ा जा सकता है. भारतीय सिनेमा में गाँव के किरदारों के बारे में जब भी बात होती है तो दीपक डोबरियाल का नाम ज़हन में ज़रुर आता है। ओमकारा, गुलाल, तनु वेड्स मनु, मकबूल, दांये या बांये से लेकर दबंग-2 जैसी फिल्मों में अपने गंवई अंदाज़ से दर्शकों के बीच अपनी अलग पहचान बनाने वाले दीपक डोबरियाल से बात की उमेश पंतने। पेश हैं इस बातचीत READ MORE
परसों रात की बात
फोटो: उमेश पंत मैने परसों रात अंधेरे को उलझते हुए देखा देखा उसे रोशनी से लड़ते हुए वो मिटा रहा था उजाले के हस्ताक्षर सुबह बस होने को थी और अंधेरा मानने को तैयार नहीं था इतनी उजली नहीं है दुनिया ये जो खामोश मुगालते हैं जिन्हें हम ‘सब बढि़या है’ कहकर पालते हैं वो सब कुपोषण के शिकार हैं उनके खून में बहता है एनीमिया आप किस दुनिया में रहते हैं मियां ?? अंधेरा बता रहा था उजाले को तुम्हारी READ MORE
इलाज के लिए ‘अमरीका’ भी करता है बंधुआ मजदूरी
लखनउ से तकरीबन 100 किलोमीटर दूर सीतापुर के पगरोर्इ गांव में रहने वाले अमरीका प्रसाद दिसम्बर की 19 तारीख से किंग जौर्ज मेडिकल कालेज में डेरा जमाये हुए हैं। न्यूरोलौजी डिपार्टमेंट के ठीक बाहर कड़कड़ाती ठंड में अपने पूरे परिवार के साथ वो बस इसी उम्मीद में बैठे हैं कि उनकी 10 महीने की बेटी का इलाज हो जाये। “बच्ची बीमार है। डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा कि अभी छुटटी पे जा रहे हैं। 14 READ MORE
अनजान शहर में पहचान की तलाश
साप्ताहिक अखबार गांव कनेक्शन (16 से 22 दिसम्बर) में प्रकाशित मुम्बई के अंधेरी स्टेशन के भीतर उस ओवरब्रिज पर भागती भीड़ का न कोई सर पैर है, न कोई ओर छोर। अजनबी अनजान चेहरों में पहचान तलाशने की तमाम कोशिशें जब हारकर लौटती हैं तो अपना पीछे छूट गया कस्बा याद आता है। स्टेशन से गुजरती कोई भी लोकल ट्रेन उस कस्बे की ओर नहीं लौटती। कितनी आसानी से चिलचिलाती सर्दी की सिहरनें गंधाते पसीनों की बू READ MORE
कितना जायज़ है मौत का मज़ाक
इस बीच फेसबुक पर दो मसलों को लेकर प्रतिक्रियाओं का अनवरत दौर जारी है। बाला साहब ठाकरे का देहावसान और अजमल कसाब को गुपचुप दी कई फांसी। इन दोनों ही विषयों में यूं तो तुलना करने के लिये कुछ भी समानता नहीं है पर इन पर आ रही प्रतिक्रियाओं में जो एक बात कौमन है वो है इन पर की जा रही बेहद असंवेदनशील टिप्पणियां। फेसबुक पर इन मौतों को लेकर तमाम तरह के मज़ाक किये जा रहे हैं। लोगों ने यहां तक READ MORE
तस्वीरें और दीवारें
वक्त के चौखटे में कहींपुरानी यादों की एक तस्वीर लटकी हुई थीअरसे से कुछ खटकता रहा था उसमेंकुछ तल्खियां थी शायदकई मर्तबा सोचा किउस तस्वीर को दीवार से उतार फेंकूंकई दफा कोशिश भी कीपर तस्वीर को न हटना था, न हटीबार बार हटाने पर भीकिसी काई सी उग आती थी कमज़र्फअब जाके समझ आया हैकि कुछ तस्वीरें वक्त की दीवार से नहीं हटतीकुछ दीवारों को वक्त की तस्वीर से हटाना होता READ MORE
अफवाहें गढ़ती वर्चुअल दुनिया
फेसबुक जैसी नेटवर्किंग सार्इट पर फैली अफवाह ने बैंग्लौर से लगभग 3 हज़ार उत्तर भारतीय लोगों को अपने अपने घरों की ओर जाने को मजबूर कर दिया। इस घटना ने एक अजीब सा डर पैदा किया है जिसे आपसे साझा कर रहा हूं। इन दिनों इन्टरनेट के सामने बैठे बैठे अक्सर मैं सोचता हूं कि कहीं हमें दरवाजों में बंद होने की आदत तो नहीं हो रही? कभी कभी लगता है कि मेरे आस पास कर्इ किस्म के दरवाजे हैं जो बंद रहते हैं। READ MORE
उधारी की मौज और परेशानियों की नकदी
मुम्बर्इ में नया नया आया था तो टीवी के एक लेखक से मिलने गया। लोखंडवाला की पौश कौलानी में टूबीएचके लेकर अकेले रहते थे। मतलब ये कि पैसा अच्छा कमाते थे। बातों बातों में उन्होंने बताया जिमिंग, स्वीमिंग, कार जैसे कर्इ नये शौक उन्होंने टीवी की दुनिया में आकर पाल लिये। क्यूंकि अभी पैसा अच्छा मिल रहा था तो र्इएमआर्इ नाम के उस जादुर्इ तरीके ने चीजें आसान कर दी थी। हर महीने कटने वाली इस READ MORE
मैने दिल से कहा, ढूंढ़ लाना खुशी…
मैने दिल से कहा ढ़ूंढ़ लाना खुशी……कल मशहूर गीतकार और पटकथा लेखक नीलेश मिस्रा के लिखे गीत की इन पंकितयों को सुनते हुए अचानक खयाल आया कि वाह क्या सच्ची बात कही है। अक्सर हम नासमझों की तरह खुशी के छोटे छोटे पलों को बहुत छोटा और गमों के छोटे छोटे लमहों को भी बहुत बड़ा करके आंकते हैं। खुशी की तलाश में निकलते तो हैं पर रासते से बेवजा ही ग़मों के तिनके समेटकर ले आते हैं। और फिर उन्हीं READ MORE
तनहा तनहा यहां पे जीना ये कोर्इ बात है?
अकेलापन हमारे समय के उन अहसासों में से एक है जो संक्रामक रोग की तरह दिन पर दिन फैल रहा है। किसी ने कहा है कि जिस वक्त आप अकेला महसूस करते हैं उस वक्त आपको खुद के साथ रहने की सबसे ज्यादा ज़रुरत होती है। जिन हालातों में हम रह रहे हैं वहां रोज़मर्रा की चीजों के साथ वक्त भी दिन पर दिन महंगा होने लगा है। ऐसे में दूसरों के लिये तो दूर की बात हम अपने लिये भी फुरसत के लमहे नहीं निकाल पाते। और इस READ MORE
एक ईमानदारी से बोले गये झूठ की ‘कहानी’
कहानी के ट्रेलर देखकर लग रहा था कि कोई रोने धोने वाली फिल्म होगी… जिसमें शायद कलकत्ते को लेकर नौस्टेल्जिया जैसा कुछ होगा… शायद एक पीडि़त प्रेग्नेंट औरत होगी जो अपने अधिकारों के लिये लड़ रही होगी… शायद नो वन किल्ड जैसिका जैसा ही कुछ… पर फिल्म देखने के बाद अच्छा लगा कि कुछ नया देखने को मिला… प्रिडिक्टिबिलिटी से परे… बौलिवुड के मौजूदा परिदृश्य में जिस तरह फिल्मों से READ MORE
हमारे सिनेमा को जरुरत है पान सिंह तोमर जैसे बागियों की
बीहड़ में बागी होते हैं… डकैत मिलते हैं पार्लामेन्ट में…. पान सिंह तोमर का ये डायलौग फेसबुक की दीवारों पे बहुत दिनों से छाया हुआ था…. तिग्मांशू धूलिया की हासिल देखने के बाद उनकी इस फिल्म से उम्मीदें महीनों पहले से बांध ली थी… आज पवई आईआईटी के पड़ौसी बिग सिनेमा के थियेटर में फिल्म देखने के बाद लगा जैसे कोई साध पूरी हो गई। एक बागी के लिये इतना सम्मान, और अपने सिनेमा के लिये READ MORE
ब्लू वैलेन्टाईन: एक खूबसूरत तनाव
“You got to be careful that person you fall in love is worth it to you” “How can you trust your feelings when they can disappear like that..” किसी से प्यार करते वक्त जो बात सबसे जरुरी है वो ये कि इस बात का पूरा ध्यान रखा जाये कि जिससे आपको प्यार हो रहा है वो इस लायक है भी कि नहीं कि उसे प्यार किया जा सके। ये बात भले ही थोड़ा अटपटी लगे लेकिन ब्लू वैलेन्टाईन यही बात व्यावहारिक ढ़ंग से समझाती है…अक्सर हम अपनी भावनाओं के वश में आकर प्यार करते हैं… भावनाओं का भरोसा READ MORE
रेत और रोमान पोलान्सकी
बीते साल की आंखिरी सांसों के इर्द गिर्द महज महीना पुरानी बेरोजगारी की एक हल्की सी बू थी। रिज्यूमे को ईमेल के जरिये किसी किसी के इनबौक्स में धकेलने की प्रक्रिया थी। खालीपन का एक सतही अहसास था। फिर दिल्ली से मुम्बई पहुंच जाने का फैसला था। नई उम्मीदों और सचमुच का समंदर था। लहरें थी। वर्सोवा था। रोज शाम लाल सूरज का क्षितिज से नीचे उतरता एक असल दृश्य था। और समुद्र में पहले सुनहरा और फिर READ MORE
What a ‘Dam’ shit
What a dam meant for? Is it for the benefit of a common man or to displace them from there homeland? In Uttarakhand Pancheswar dam issue is day by day rasing protests from the far villages. Fact file is really astonishing and says the story of exploitation of not only a big range of mountain area but also a common PAHADI man. Pancheswar dam was proposed in 1994 under Mahakali treaty between India and Nepal. Although Nepali Political parties including opposition party were not happy with this treaty. But now this project is going to come into action. Almost 19500 people are going to loose there homelands after the construction of this dam. 120 Indian and about 50 Nepali villages will be displaced. This multipurpose project is supposed to produce 6500 megawatt power. But these villagers are not happy with the project at least news of protests coming from far mountains makes it clear. It is a matter to think that how justifiable it is to displace peoples in this large amount. READ MORE
Hello world!
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एक पिक्चर हौल आपके लिए
http://picturehaal.blogspot.com/हिन्दी में फिल्मों पर अभी बहुत कम ब्लौग हैं। और जो हैं भी उनमें भी फिल्मों के बारे में सीखने सिखाने की परिपाटी अभी शुरु नहीं हो पाई है। पिक्चर हौल एक प्रयास है फिल्मों के बारे में सीखते हुए उन्हें समझने का। एक फिल्म स्टूडेंट होने के नाते फिल्मों में रुचि है और सीखने की चाह भी है। पिक्चर हौल ऐसे ही लोगों के लिए है जिनकी फिल्मों में रुचि है औ वो मेरी ही तरह सीखना चाहते हैं READ MORE
यारसा गुम्बा के साईड इफैक्ट
कुछ समय पहले जब उत्तराखंड जाना हुआ तो वहां यूं ही चलते चलते यारसा गम्बू पर विनोद भाई से बात हो रही थी। बात करते करते महसूस हुआ कि कुछ रोचक जानकारियां सामने आ रही हैं। मैने बिना उन्हें बताये अपना फोन निकाला और उनकी सारी बातें रिकोर्ड कर ली। विनोद उप्रेती दरअसल उच्च हिमालयी क्षेत्रों की वनस्पतियों पर विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत शोध कार्य कर रहे हैं। यहां पेश है उनसे हुई बातचीत के READ MORE
हिन्दुस्तान में नई सोच
अच्छा लगा कि रवीश जी हिन्दी के ब्लौगर्स को मीडिया में जगह दे रहे हैं और इस बार उनकी खोज के दायरे में मेरा ब्लाग भी शामिल हुआ है। दरअसल यह ब्लाग संस्कृति को पहचान देने और प्रोत्साहन देने का एक अच्छा प्रयास है कि उनकी चर्चा की जाय और और इसी बहाने ब्लाग जगत के बीच से आ रही नयी बातों और चर्चाओं को अन्य संचार माध्यमों के बीच लाया जाये। दैनिक समाचार पत्र हिन्दुस्तान में रवीश जी ने यह प्रयास READ MORE
किनके नयनों को प्यारी है नैनो
नैनो अब सड़कों पर होगी और कई बे कार लोगों के दिमाग में चुहल पैदा करेगी कि काश अब बहुत हो गया। इस कार के आने के बाद कई पहलुओं पर चर्च ए आम है। इस ब्लौग के लिए रोहित ने ये आलेख आ भेजा हैं साभार छाप रहा हूंरोहित जोशी एक लम्बे इन्तजार के बाद टाटा ‘नैनो’ बाजार में उतर आई है। जुलाई माह से ‘नैनो’ सड़कों में भागती-दौड़ती दिखाई देने लगेंगी। सम्पूर्ण मीडिया जगत् ने भी ‘नैनों’ पर बिठाकर इसका स्वागत READ MORE
आज का समाज और जनआन्दोलन
रंजना कुमारी ,निदेशक, सेन्टर फार सोशल रिसर्चलोकतंत्र में जनआन्दोलनों की भूमिका काफी अहम रही है। यह भूमिका आज के दौर में बढ़ गई है। आज समाज का गरीब तबका कमजोर है। जन आन्दोलन ही सरकार और बाजार के बीच उलझे आम जन के मुददों को उठा सकते हैं। आज मानवाधिकार, महिलाओं से जुड़े मुददे समाज में सबसे ज्यादा जरुरी दिखई दे रहे हैं। राजनीति का स्वरुप जनमुखी नहीं रह गया है जिस वजह से ये मुददे कहीं दब से READ MORE
स्वामीनारायण अक्षरधाम अतीत में झांकने की अनूठी कोशिश
‘अक्षर’ यानी कभी नष्ट न होने वाला। अपने नाम के अनुकुल ही अक्षरधाम के चप्पे-चप्पे पर भारतीय संस्कृति, ज्ञान और कला की ऐसी दुनिया बसी है जो न अब तक नष्ट हुई, न आगे होगी। दिल्ली का स्वामी नारायण मंदिर आज भारत की सबसे आकर्षक विरासतों में शुमार हो चुका है। नवम्बर 2005 में यमुना किनारे स्थित यह नवनिर्मित मंदिर भारतीय स्थापत्य और षिाल्पकला का जीता-जागता सबूत तो यह है ही, पारम्पिरिक षिल्प में READ MORE